पटना का नाम पटलीपुत्र कैसे पड़ा ? Aurangzeb ने Patna का नाम क्यों बदला, Patliputra की खोज में Tata का क्या रोल था?
आज हम बात करेंगे उस शहर की, जिसे जल दुर्ग कहा जाता था। यह शहर तीन नदियों के किनारे बसा था और पत्थरों की दीवार से घिरा हुआ था जिसमें 64 द्वार और 570 मीनारें थीं। यह शहर कभी दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था, जिसे जीतना असंभव माना जाता था। हम बात कर रहे हैं पाटलीपुत्र की।
पाटलीपुत्र का इतिहास –
पाटलीपुत्र, जो वर्तमान में पटना के नाम से जाना जाता है, भारत के पूर्वी कोने में स्थित है। इस शहर की स्थापना ईसा पूर्व 600 साल पहले हुई थी, जब भारत में 16 महाजनपद हुआ करते थे। मगध महाजनपद की नींव हर्यंक वंश के राजा बिंबिसार ने रखी थी। उनके पुत्र, अजातशत्रु के समय में, मगध पहला साम्राज्य बना। अजातशत्रु ने ही पाटलीपुत्र की स्थापना की थी।
पाटलीपुत्र की स्थापना –
अजातशत्रु ने वैशाली पर आक्रमण करने के लिए गंगा नदी के किनारे पाटलीपुत्र का बेस बनाया। यह गांव छावनी की शक्ल में बदल गया और मगध सेना ने यहां से वैशाली पर आक्रमण किया। अजातशत्रु के पुत्र उदयन ने मगध की राजधानी राजगृह से पाटलीपुत्र में स्थानांतरित कर दी।
पाटलीपुत्र का स्वर्णिम काल –
पाटलीपुत्र का स्वर्णिम काल मौर्य वंश के समय आया। इस समय में पाटलीपुत्र तीन नदियों – गंगा, सोन और गंडक – के किनारे बसा हुआ था, जिससे इसे प्राकृतिक सुरक्षा मिलती थी। ग्रीक इतिहासकार मेगस्थनीज ने इसे जल दुर्ग की उपाधि दी थी। मेगस्थनीज ने पाटलीपुत्र का व्यापक विवरण किया है, जिसके अनुसार यह शहर लकड़ी से बना था और इसे दुनिया के सबसे भव्य शहरों में से एक माना जाता था।
पाटलीपुत्र का पतन –
गुप्त वंश के पतन के बाद, पाटलीपुत्र का महत्व कम हो गया। सातवीं सदी में, चीनी यात्री ह्वेनसांग ने पाटलीपुत्र को लगभग बर्बाद पाया। इसके बाद, यह शहर धीरे-धीरे इतिहास के पन्नों में खो गया।
पाटलीपुत्र की पुनर्खोज –
18वीं सदी में इतिहासकारों ने पटना और पाटलीपुत्र के कनेक्शन को जोड़ने की कोशिश की। 1900 तक यह साबित हो चुका था कि पटना ही पाटलीपुत्र है। लेकिन इसके अवशेष जमीन के नीचे दबे थे और व्यापक खुदाई की जरूरत थी। ब्रिटिश अधिकारी लॉरेंस ऑर्टन ने प्राचीन ग्रंथों का सहारा लेकर पाटलीपुत्र के अवशेषों की खोज की।
रतन टाटा का योगदान –
रतन टाटा ने पाटलीपुत्र की खुदाई के लिए सालाना ₹30,000 का ग्रांट देने का वादा किया। खुदाई शुरू हुई और 1913 में पाटलीपुत्र का प्राचीन शहर खोजा गया। चार साल तक चली खुदाई में ऐतिहासिक अवशेष, कॉइंस और मूर्तियां मिलीं, जिन्हें आज भी पटना म्यूजियम में देखा जा सकता है।
पाटलीपुत्र का महत्व –
पाटलीपुत्र ना सिर्फ पॉलिटिक्स का केंद्र था बल्कि संस्कृति, साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण था। आर्यभट्ट, पाणिनी और वात्स्यायन जैसे महान विद्वानों का संबंध पाटलीपुत्र से था। लगभग 800 साल तक यह शहर भारत का केंद्र बना रहा।
पाटलीपुत्र से पटना तक का सफर –
पाटलीपुत्र के नाम का परिवर्तन भी रोचक है। 16वीं सदी में शेरशाह सूरी ने यहां एक किला बनवाया और इस शहर का नाम पटना पड़ा। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे अजीमाबाद नाम दिया, लेकिन आम लोग इसे पटना ही बुलाते रहे।
पाटलीपुत्र की कहानी हमें बताती है कि कैसे एक शहर का उत्थान और पतन होता है और कैसे वह इतिहास के पन्नों में जीवित रहता है। यह शहर भारत की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और विज्ञान का गवाह रहा है और आज भी इसकी धरोहर हमें अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है।